समाज में पॉलिथीन का उपयोग बड़ी मात्रा में सभी दुकानदार करते है। इसकी वजह है सस्ता होना। आपको बता दें कि अगर आज आप सस्ता देखेंगे तो आने वाले समय में सभी लोगों के लिए काफी महंगा साबित होगा। इस समस्या का पहला है केंद्र या राज्य सरकार पॉलिथीन की समस्या से उबरने के लिए सख्त कानून लाए तथा साथ ही साथ पॉलिथीन की कंपनी को बंद करने का आदेश दे। लेकिन ऐसा होगा कहां, इसके बंद हो जाने से क्या होगा-
पॉलिथीन और प्लास्टिक गाँव से लेकर शहर तक लोगों की सेहत बिगाड़ रहे हैं। शहर का ड्रेनेज सिस्टम अक्सर पॉलिथीन से भरा मिलता है। इसके चलते नालियाँ और नाले जाम हो जाते हैं। इसका प्रयोग तेजी से बढ़ा है। प्लास्टिक के गिलासों में चाय या फिर गर्म दूध का सेवन करने से उसका केमिकल लोगों के पेट में चला जाता है। इससे डायरिया के साथ ही अन्य गम्भीर बीमारियाँ होती हैं।
पॉलिथीन का बढ़ता हुआ उपयोग न केवल वर्तमान के लिये बल्कि भविष्य के लिये भी खतरनाक होता जा रहा है। बीते 20-25 साल पहले यानी सन् 1990 की बात करें तो उस समय लोग कपड़े के थेल कर जाते थे, पर अब खाली हाथ जाकर दुकानदार से पॉलिथीन माँगकर सामान लाते हैं। पहले अखबार के लिफाफे होते थे किन्तु उसके स्थान पर आज पॉलिथीन का उपयोग किया जा रहा है।
सबसे गंभीर समस्या यह है कि पृथ्वी तल पर जमा पॉलिथीन, जमीन का जल सोखने की क्षमता को खत्म कर रही है। आपको बता दें कि जब जल जमीन के अंदर प्रवेश नहीं करनेद देगा, जिसकी वजह से पृथ्वी का तापमान में लगातार वृद्धि होगी और पृथ्वी के तापमान में वृद्धि हो जाने से कई तरह के पृथ्वी के अंदर उथल-पुथल होंगे ही, इसीकारण इंसानों के लिए खतरनाक साबित हो जाएगा।
खत्म कर रही है। इससे भूजल स्तर गिर रहा है। सुविधा के लिये बनाई गई पॉलिथीन आज सबसे बड़ी असुविधा का करण बन गई है। प्राकृतिक तरीके से नष्ट न होने के कारण यह धरती की उर्वरक क्षमता को धीरे-धीरे समाप्त कर रही है। विकास के नाम पर शहरों में पेड़ों की अन्धाधुन्ध कटाई हुई है। तरह-तरह के निर्माण के दौरान भी पेड़ काटे गए। रोड चौड़ीकरण के दौरान भी सैकड़ों पेड़ कुर्बान हो गए, पर उतने या उससे ज्यादा पेड़ वापस नहीं लगाए गए। प्लास्टिक को जलाने से भी नुकसान होगा। इसका जहरीला धुआँ स्वास्थ्य के लिये खतरनाक है।
पॉलिथीन की पन्नियों में लोग कूड़ा भरकर फेंकते हैं। कूड़े के ढेर में खाद्य पदार्थ खोजते हुए पशु पन्नी निगल जाते हैं। ऐसे में पन्नी उनके पेट में चली जाती है। बाद में ये पशु बीमार होकर दम तोड़ देते हैं। प्लास्टिक और पॉलिथीन गाँव से लेकर शहर तक लोगों की सेहत बिगाड़ रहे हैं। शहर का ड्रेनेज सिस्टम अक्सर पॉलिथीन से भरा मिलता है। इसके चलते नालियाँ और नाले जाम हो जाते हैं। इसका प्रयोग तेजी से बढ़ा है।
देखा जा रहा है कि कुछ लोग अपनी दुकानों पर चाय प्लास्टिक की पन्नियों में मँगा रहे हैं। गर्म चाय पन्नी में डालने से पन्नी का केमिकल चाय में चला जाता है, जो बाद में लोगों के शरीर में प्रवेश कर जाता है। चिकित्सकों ने प्लास्टिक के गिलासों और पॉलिथीन में गरम पेय पदार्थों का सेवन न करने की सलाह दी है।
कई जगह पॉलिथीन पर प्रतिबन्ध है, बावजूद इसके दुकानदार चोरी-छिपे पॉलिथीन का प्रयोग करते पाये जाते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्यों नहीं सफल होता है पॉलिथीन पर प्रतिबन्ध? पर्यावरण एवं स्वास्थ्य दोनों के लिये नुकसानदायक 40 माइक्रॉन से कम पतली पॉलिथीन पर्यावरण की दृष्टि से बेहद नुकसानदायक होती है।
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की मदद से पन्नियों को चक्रित करके सड़क निर्माण में उपयोग में लाया जा रहा है। जर्मनी में प्लास्टिक के कचरे से बिजली का निर्माण भी किया जा रहा है। इसके अलावा पन्नियों को चक्रित करके खाद भी बनाई जा सकती है। इसलिये यदि सरकारें इस दिशा में गम्भीर हों, तो नुकसानदायक प्लास्टिक के कचरे से लाभ भी कमाया जा सकता है। ऐसे प्रयोग को व्यापक बनाया जा सकता है। आज समाज के हर व्यक्ति को पॉलिथीन के उपयोग से बचना चाहिए तभी हम इस समस्या से छुटकारा पा सकेंगे।
सबसे बड़ी समस्या पॉलिथीन कंपनियों के बंद हो जाने पर तीन मिलियन से अधिक लोगों का छिन जाएगा रोजगार-
भारतीय प्लास्टिक बाजार में लगभग 25,000 कंपनियां शामिल हैं और ये कंपनिया तीन मिलियन लोगों को रोजगार प्रदान की है। वर्ष 2009 में बहुलक उत्पादन की घरेलू क्षमता 5.72 मिलियन टन थी। आपको बता दें कि 2019 के वित्तीय वर्ष में, भारत में प्लास्टिक की सबसे ज्यादा मांग 33 प्रतिशत पॉलीथीन के लिए थी। इसके बाद पॉलीप्रोपाइलीन था, जिसकी 32 प्रतिशत की मांग थी। भारतीय बाजार की कुल मांग वैश्विक मांग के छह प्रतिशत से कम है। वहीं, ऑल इंडिया प्लास्टिक मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (AIPMA) के अनुसार, भारत की प्लास्टिक-प्रसंस्करण उद्योग में 30,000 से अधिक इकाइयाँ और 2.25 लाख करोड़ रुपये का सालाना कारोबार है। उद्योग में 4 मिलियन से अधिक लोग कार्यरत हैं।
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